जिला पंचायत चुनाव : क्षेत्र क्रमांक 14 में बदलाव की गूंज, जनता ने कहा — अब चाहिए नया और सक्षम नेतृत्व

- ग्राम चौपालों में छाया असंतोष, नेताओं की वादाखिलाफी पर उठे सवाल
कवर्धा। जिला पंचायत चुनाव 2025 में क्षेत्र क्रमांक 14 के मतदाताओं ने इस बार बड़े बदलाव की मांग को लेकर स्पष्ट संदेश दिया है। लंबे समय से सत्ता और संगठन में रहे नेताओं को जनता ने आड़े हाथों लिया है। उनका कहना है कि बार-बार उन्हीं चेहरों को मौका देने का कोई फायदा नहीं हुआ। क्षेत्र का विकास रुका हुआ है, जबकि समस्याएं पहले से अधिक बढ़ गई हैं।
वर्तमान नेता की विफलता पर जनाक्रोश
जनपद सदस्य और क्षेत्र के वर्तमान नेता, जो खुद को जनता का सेवक कहते हैं, पर विकास न कर पाने के आरोप लग रहे हैं। जनता के अनुसार, उनकी प्राथमिकता केवल अपने निजी स्वार्थ और पार्टी पदों को हासिल करना रही है। क्षेत्र में जल, सड़क, और स्वास्थ्य सुविधाओं की स्थिति खराब है। जनता का कहना है कि उन्होंने केवल भाषण दिए, लेकिन धरातल पर कोई काम नहीं किया।
बड़ौदा खुर्द के एक ग्रामीण ने कहा, “वर्तमान जनपद सदस्य ने हर चुनाव से पहले विकास का सपना दिखाया, लेकिन जीतने के बाद कभी वापस नहीं आए। हर बार वादों की झड़ी लगाते हैं, लेकिन गाँव में न सड़क बनी, न कोई नई योजनाएं लागू हुईं।”
पार्टी संगठन के भीतर भी असंतोष
इस क्षेत्र से जुड़े कई नेता पार्टी संगठन में सक्रिय रहे हैं, और खुद को इस क्षेत्र का लोकप्रिय नेता मानते है, लेकिन उनका योगदान केवल अपने समर्थकों को फायदा पहुँचाने तक सीमित रहा। पार्टी के ही कार्यकर्ता इन पर विश्वास खो चुके हैं। एक वरिष्ठ कार्यकर्ता ने नाम न बताने की शर्त पर कहा, “संगठन का इस्तेमाल व्यक्तिगत लाभ के लिए किया गया। पार्टी का नाम और जनता का भरोसा दोनों इन नेताओं ने तोड़ा है।”
ग्रामीण चौपालों से उठी बदलाव की मांग
ग्रामीणों ने चौपाल बैठकों में कहा कि पुराने नेताओं को किसी भी पार्टी से टिकट नहीं मिलना चाहिए। एक और ग्रामीण ने कहा, “नाम के नेता रहे हैं, काम का कोई अता-पता नहीं। जनता को अब बदलाव चाहिए।”
विविधता और नए चेहरे की चाहत
चुकी हमारा देश विविधता से बना देश है तो यहाँ समाजो में भेदभाव क्यों? चुनावों में केवल एक समाज से जुड़े नेताओं को बार-बार टिकट मिलने पर भी सवाल उठ रहे हैं। जनता का मानना है कि विकास के लिए हर वर्ग को प्रतिनिधित्व मिलना चाहिए।
क्या नया चेहरा बदलेगा हालात?
अब देखना यह है कि राजनीतिक दल जनता की आवाज सुनते हैं या फिर से उन्हीं असफल चेहरों को टिकट देकर जनता के साथ छल करते हैं।